Patriotic poems by famous Poets and Writers
[h=3]वह देश कौन सा है[/h]
मन-मोहिनी प्रकृति की गोद में जो बसा है।
सुख-स्वर्ग-सा जहाँ है वह देश कौन-सा है?
जिसका चरण निरंतर रतनेश धो रहा है।
जिसका मुकुट हिमालय वह देश कौन-सा है?
नदियाँ जहाँ सुधा की धारा बहा रही हैं।
सींचा हुआ सलोना वह देश कौन-सा है?
जिसके बड़े रसीले फल, कंद, नाज, मेवे।
सब अंग में सजे हैं, वह देश कौन-सा है?
जिसमें सुगंध वाले सुंदर प्रसून प्यारे।
दिन रात हँस रहे है वह देश कौन-सा है?
मैदान, गिरि, वनों में हरियालियाँ लहकती।
आनंदमय जहाँ है वह देश कौन-सा है?
जिसकी अनंत धन से धरती भरी पड़ी है।
संसार का शिरोमणि वह देश कौन-सा है?
सब से प्रथम जगत में जो सभ्य था यशस्वी।
जगदीश का दुलारा वह देश कौन-सा है?
पृथ्वी-निवासियों को जिसने प्रथम जगाया।
शिक्षित किया सुधारा वह देश कौन-सा है?
जिसमें हुए अलौकिक तत्वज्ञ ब्रह्मज्ञानी।
गौतम, कपिल, पतंजलि, वह देश कौन-सा है?
छोड़ा स्वराज तृणवत आदेश से पिता के।
वह राम थे जहाँ पर वह देश कौन-सा है?
निस्वार्थ शुद्ध प्रेमी भाई भले जहाँ थे।
लक्ष्मण-भरत सरीखे वह देश कौन-सा है?
देवी पतिव्रता श्री सीता जहाँ हुईं थीं।
माता पिता जगत का वह देश कौन-सा है?
आदर्श नर जहाँ पर थे बालब्रह्मचारी।
हनुमान, भीष्म, शंकर, वह देश कौन-सा है?
विद्वान, वीर, योगी, गुरु राजनीतिकों के।
श्रीकृष्ण थे जहाँ पर वह देश कौन-सा है?
विजयी, बली जहाँ के बेजोड़ शूरमा थे।
गुरु द्रोण, भीम, अर्जुन वह देश कौन-सा है?
जिसमें दधीचि दानी हरिचंद कर्ण से थे।
सब लोक का हितैषी वह देश कौन-सा है?
बाल्मीकि, व्यास ऐसे जिसमें महान कवि थे।
श्रीकालिदास वाला वह देश कौन-सा है?
निष्पक्ष न्यायकारी जन जो पढ़े लिखे हैं।
वे सब बता सकेंगे वह देश कौन-सा है?
छत्तीस कोटि भाई सेवक सपूत जिसके।
भारत सिवाय दूजा वह देश कौन-सा है?
- रामनरेश त्रिपाठी
Patriotic Poems in Hindi
[h=3]तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है[/h]
तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है
सचमुच आज काट दी हमने
ज़ंजीरें स्वदेश के तन की
बदल दिया इतिहास, बदल दी
चाल समय की चाल पवन की
देख रहा है राम-राज्य का
स्वप्न आज साकेत हमारा
खूनी कफ़न ओढ़ लेती है
लाश मगर दशरथ के प्रण की
मानव तो हो गया आज
आज़ाद दासता बंधन से पर
मज़हब के पोथों से ईश्वर का जीवन आज़ाद नहीं है ।
तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है ।
हम शोणित से सींच देश के
पतझर में बहार ले आए
खाद बना अपने तन की —
हमने नवयुग के फूल खिलाए
डाल-डाल में हमने ही तो
अपनी बाहों का बल डाला
पात-पात पर हमने ही तो
श्रम-जल के मोती बिखराए
क़ैद कफ़स सय्याद सभी से
बुलबुल आज स्वतंत्र हमारी
ऋतुओं के बंधन से लेकिन अभी चमन आज़ाद नहीं है ।
तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है ।
यद्यपि कर निर्माण रहे हम
एक नई नगरी तारों में
सीमित किन्तु हमारी पूजा
मन्दिर-मस्जिद गुरुद्वारों में
यद्यपि कहते आज कि हम सब
एक हमारा एक देश है
गूँज रहा है किन्तु घृणा का
तार-बीन की झंकारों में
गंगा-जमना के पानी में
घुली-मिली ज़िन्दगी हमारी
मासूमों के गरम लहू से पर दामन आज़ाद नहीं है।
तन तो आज स्वतंत्र हमारा लेकिन मन आज़ाद नहीं है ।
- गोपालदास "नीरज"
PATRIOTIC POEMS IN HINDI
[h=3]मैं भारत गुण-गौरव गाता[/h]
मैं भारत गुण-गौरव गाता !
श्रद्धा से उसके कण-कण को
उन्नत माथा नवाता ।
प्रथम स्वप्न-सा आदि पुरातन,
नव आशाओं से नवीनतम,
प्राणाहुतियों से युग-युग की
चिर अजेय बलदाता !
आर्य शौर्य धृति, बौद्ध शांति द्युति,
यवन कला स्मिति, प्राच्य कर्म रति,
अमर अमित प्रतिभायुत भारत
चिर रहस्य, चिर-ज्ञाता !
वह भविष्य का प्रेम-सूत है,
इतिहासों का मर्म पूत है,
अखिल राष्ट्र का श्रम, संयम, तप:
कर्मजयी, युग त्राता !
मैं भारत गुण-गौरव गाता।
- शमशेर बहादुर सिंह
PATRIOTIC POEMS IN HINDI
[h=3]उठो सोने वालों[/h]
भारत क्यों तेरी साँसों के, स्वर आहात से लगते हैं
अभी जियाले परवानों में आग बहुत सी बाकी है .
क्यों तेरी आँखों में पानी, आकार ठहरा–ठहरा है ,
जब तेरी नदियों की लहरें डोल-डोल मदमाती है .
जो गुजरा है वह तो कल था, अब तो आज की बातें हैं ,
और जो लड़े जो बेटे तेरे, राज काज की बातें हैं ,
चक्रवात पर, भूकम्पों पर, किसी का जोर नहीं ,
और चली सीमा पर गोली, सभ्य समाज की बातें हैं
कल फिर तू क्यों, पेट बाँध कर सोया था, मैं सुनता हूँ
जब तेरे खेतों की बाली, लहर–लहर इतराती हैं
अगर बात करनी है, उनको कश्मीरों पर करने दो ,
अजय आहूजा, अधिकारी, नय्यर, जब्बर को मरने दो ,
वो समझौता–ए–लाहौरी याद नहीं कर पाएंगे ,
भूल कारगिल की गद्दारी, नयी मित्रता गढ़ने दो ,
एसी अटल अवस्था में भी, कल क्यों पल-पल टालता है,
जब मीठी परवेजी गोली, गीत सुना बहलाती है .
चलो ये माना थोड़ा गम है, पर किसको न होता है ,
जब रातें जागने लगतीं है, तभी सवेरा सोता है,
जो अधिकारों पर बैठे हैं, वह उनका अधिकार ही है ,
फसल काटता है कोई और कोई उसको बोता है .
क्यों तू जीवन जटिल चक्र की , इस उलझन में फँसता है
जब तेरी गोद में बिजली कान्ध-कान्ध मुस्काती है .
-अभिनव शुक्ला