Ram Prasad Bismil Poems in Hindi

Discussion in 'Poems and Poets' started by manish.pawar, Jan 23, 2014.

  1. manish.pawar

    manish.pawar New Member

    Collection of all Patriotic Poems by great Patriot and Indian Revolutionary Ram Prasad Bismil.

    सरफ़रोशी की तमन्ना
    (Sarfaroshi ki Tamanna Poem)


    सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
    देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है

    ऐ वतन, करता नहीं क्यूँ दूसरी कुछ बातचीत,
    देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
    ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,
    अब तेरी हिम्मत का चरचा ग़ैर की महफ़िल में है
    सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

    वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान,
    हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है
    खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद,
    आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है
    सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

    है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर,
    और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर.
    ख़ून से खेलेंगे होली अगर वतन मुश्क़िल में है
    सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

    हाथ, जिन में है जूनून, कटते नही तलवार से,
    सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से.
    और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है,
    सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

    हम तो घर से ही थे निकले बाँधकर सर पर कफ़न,
    जाँ हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये कदम.
    ज़िंदगी तो अपनी मॆहमाँ मौत की महफ़िल में है
    सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

    यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
    क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?
    दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
    होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज.
    दूर रह पाए जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,
    सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

    वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमे न हो ख़ून-ए-जुनून
    क्या लड़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है
    सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
    देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में

    - राम प्रसाद बिस्मिल


    ऐ मातृभूमि! तेरी जय हो

    ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो
    प्रत्येक भक्त तेरा, सुख-शांति-कांतिमय हो
    अज्ञान की निशा में, दुख से भरी दिशा में
    संसार के हृदय में तेरी प्रभा उदय हो

    तेरा प्रकोप सारे जग का महाप्रलय हो
    तेरी प्रसन्नता ही आनन्द का विषय हो
    वह भक्ति दे कि 'बिस्मिल' सुख में तुझे न भूले
    वह शक्ति दे कि दुःख में कायर न यह हृदय हो

    - Ram Prasad Bismil Poem




    हे मातृभूमि

    हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ ।
    मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।

    माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला ;
    जिह्वा पे गीत तू हो मेरा, तेरा ही नाम गाऊँ ।।

    जिससे सपूत उपजें, श्री राम-कृष्ण जैसे;
    उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।।

    माई समुद्र जिसकी पद रज को नित्य धोकर;
    करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ ।।

    सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर;
    वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ ।।

    तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मंत्र गाऊँ।
    मन और देह तुझ पर बलिदान मैं जाऊँ ।।

    - राम प्रसाद बिस्मिल


    हविश बाकी हमारे दिल में है !

    चर्चा अपने क़त्ल का अब दुश्मनों के दिल में है,
    देखना है ये तमाशा कौन सी मंजिल में है ?

    कौम पर कुर्बान होना सीख लो ऐ हिन्दियो !
    ज़िन्दगी का राज़े-मुज्मिर खंजरे-क़ातिल में है !

    साहिले-मक़सूद पर ले चल खुदारा नाखुदा !
    आज हिन्दुस्तान की कश्ती बड़ी मुश्किल में है !

    दूर हो अब हिन्द से तारीकि-ए-बुग्जो-हसद ,
    अब यही हसरत यही अरमाँ हमारे दिल में है !

    बामे-रफअत पर चढ़ा दो देश पर होकर फना ,
    'बिस्मिल' अब इतनी हविश बाकी हमारे दिल में है !


    न चाहूं मान

    न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना
    मुझे वर दे यही माता रहूँ भारत पे दीवाना

    करुँ मैं कौम की सेवा पडे़ चाहे करोड़ों दुख
    अगर फ़िर जन्म लूँ आकर तो भारत में ही हो आना

    लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखुँ हिन्दी
    चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना

    भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की
    स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना

    लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन
    करुँ मैं प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना

    नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल (Bismil)"
    तुम उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना

    Patriotic Poetry by Ram Prasad Bismil

    “मुलाजिम हमको मत कहिये, बड़ा अफ़सोस होता है;
    अदालत के अदब से हम यहाँ तशरीफ लाए हैं।
    पलट देते हैं हम मौजे-हवादिस अपनी जुर्रत से;
    कि हमने आँधियों में भी चिराग अक्सर जलाये हैं।


    हैफ हम जिसपे की तैयार थे मर जाने को


    हैफ हम जिसपे की तैयार थे मर जाने को
    जीते जी हमने छुड़ाया उसी कशाने को
    क्या ना था और बहाना कोई तडपाने को
    आसमां क्या यही बाकी था सितम ढाने को
    लाके गुरबत में जो रखा हमें तरसाने को

    फिर ना गुलशन में हमें लायेगा शायद कभी
    याद आयेगा किसे ये दिल-ऐ-नाशाद कभी
    क्यों सुनेगा तु हमारी कोई फरियाद कभी
    हम भी इस बाग में थे कैद से आजाद कभी
    अब तो काहे को मिलेगी ये हवा खाने को

    दिल फिदा करते हैं क़ुरबान जिगर करते हैं
    पास जो कुछ है वो माता की नज़र करते हैं
    खाना वीरान कहाँ देखिए घर करते हैं
    खुश रहो अहल-ए-वतन, हम तो सफ़र करते हैं
    जाके आबाद करेंगे किसी वीराने को

    ना मयस्सर हुआ राहत से कभिइ मेल हमें
    जान पर खेल के भाया ना कोइ खेल हमें
    एक दिन क्या भी ना मंज़ूर हुआ बेल हमें
    याद आएगा अलिपुर का बहुत जेल हमें
    लोग तो भूल गये होंगे उस अफ़साने को

    अंडमान खाक तेरी क्यूँ ना हो दिल में नाज़ां
    छके चरणों को जो पिंगले के हुई है ज़ीशान
    मरतबा इतना बढ़े तेरी भी तक़दीर कहाँ
    आते आते जो रहे ‘बाल तिलक’ भी मेहमां
    ‘मंडाले’ को ही यह आइज़ाज़ मिला पाने को

    बात तो जब है की इस बात की ज़िद्दे थानें
    देश के वास्ते क़ुरबान करें हम जानें
    लाख समझाए कोइ, उसकी ना हरगिज़ मानें
    बहते हुए ख़ून में अपना ना ग़रेबान सानें
    नासेहा, आग लगे इस तेरे समझाने को

    अपनी क़िस्मत में आज़ाल से ही सितम रक्खा था
    रंज रक्खा था, मेहान रक्खा था, गम रक्खा था
    किसको परवाह थी और किस्में ये दम रक्खा था
    हमने जब वादी-ए-ग़ुरबत में क़दम रक्खा था
    दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को

    हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रह कर
    हम भी माँ बाप के पाले थे, बड़े दुःख सह कर
    वक़्त-ए-रुख्ह्सत उन्हें इतना भी ना आए कह कर
    गोद में आँसू जो टपके कभी रुख्ह से बह कर
    तिफ्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को

    देश सेवा का ही बहता है लहु नस-नस में
    हम तो खा बैंटे हैं चित्तोड़ के गढ़ की कसमें
    सरफरोशी की अदा होती हैं यों ही रसमें
    भाले-ऐ-खंजर से गले मिलाते हैं सब आपस में
    बहानों, तैयार चिता में हो जल जाने को

    अब तो हम डाल चुके अपने गले में झोली
    एक होती है फ़क़ीरों की हमेशा बोली
    खून में फाग रचाएगी हमारी टोली
    जब से बंगाल में खेले हैं कन्हैया होली
    कोइ उस दिन से नहीं पूछता बरसाने को

    अपना कुछ गम नहीं पर हमको ख़याल आता है
    मादार-ए-हिंद पर कब तक ज्वाल आता है
    ‘हरदयाल’ आता है ‘युरोप’ से ना ‘लाल’ आता है
    देश के हाल पे रह रह मलाल आता है
    मुंतज़ीर रहते हैं हम खाक में मिल जाने को

    नौजवानों, जो तबीयत में तुम्हारी ख़टके
    याद कर लेना हमें भी कभी भूल-ए-भटके
    आप के ज़ुज़वे बदन होये जुदा कट-कटके
    और साद चाक हो माता का कलेजा फटके
    पर ना माथे पे शिकन आए क़सम खाने को

    देखें कब तक ये असीरा-ए-मुसीबत छूटें
    मादार-ए-हिंद के कब भाग खुलें या फुटें
    ‘गाँधी अफ्रीका की बाज़ारों में सदके कूटें
    और हम चैन से दिन रात बहारें लुटें
    क्यूँ ना तरज़ीह दें इस जीने पे मार जाने को

    कोई माता की ऊंमीदों पे ना ड़ाले पानी
    जिन्दगी भर को हमें भेज के काला पानी
    मुँह में जल्लाद हुए जाते हैं छले पानी
    अब के खंजर का पिला करके दुआ ले पानी
    भरने क्यों जाये कहीं ऊमर के पैमाने को

    मयकदा किसका है ये जाम-ए-सुबु किसका है
    वार किसका है जवानों ये गुलु किसका है
    जो बहे कौम के खातिर वो लहु किसका है
    आसमां साफ बता दे तु अदु किसका है
    क्यों नये रंग बदलता है तु तड़पाने को

    दर्दमंदों से मुसीबत की हलावत पुछो
    मरने वालों से जरा लुत्फ-ए-शहादत पुछो
    चश्म-ऐ-खुश्ताख से कुछ दीद की हसरत पुछो
    कुश्त-ए-नाज से ठोकर की कयामत पुछो
    सोज कहते हैं किसे पुछ लो परवाने को

    नौजवानों यही मौका है उठो खुल खेलो
    और सर पर जो बला आये खुशी से झेलो
    कौंम के नाम पे सदके पे जवानी दे दो
    फिर मिलेगी ना ये माता की दुआएं ले लो
    देखे कौन आता है ईर्शाथ बजा लाने को

    कुछ अश*आर


    इलाही ख़ैर वो हरदम नई बेदाद करते हैँ
    हमेँ तोहमत लगाते हैँ जो हम फरियाद करते हैँ

    ये कह कहकर बसर की उम्र हमने क़ैदे उल्फत मेँ
    वो अब आज़ाद करते हैँ वो अब आज़ाद करते हैँ

    सितम ऐसा नहीँ देखा जफ़ा ऐसी नहीँ देखी
    वो चुप रहने को कहते हैँ जो हम फरियाद करते हैँ
     


  2. manish.pawar

    manish.pawar New Member

    Poems by Ram Prasad Bismil

    दुश्मन के आगे सर ये झुकाया न जायेगा.
    वारे-अलम अब और उठाया न जायेगा.

    अब इससे ज्यादा और सितम क्या करेंगे वो,
    अब इससे ज्यादा उनसे सताया न जायेगा.

    जुल्मो-सितम से तंग न आयेंगे हम कभी,
    हमसे सरे-नियाज झुकाया न जायेगा.

    हम जिन्दगी से रूठ के बैठे हैं जेल में,
    अब जिन्दगी से हमको मनाया न जायेगा.

    यारो! है अब भी वक्त हमें देखभाल लो,
    फिर कुछ पता हमारा लगाया न जायेगा.

    हमने जो लगायी है आग इन्क़लाब की,
    उस आग को किसी से बुझाया न जायेगा.

    कहते हैं अलविदा अब हम अपने जहान को,
    जाकर खुदा के घर से तो आया न जायेगा.

    अहले-वतन अगरचे हमें भूल जायेंगे,
    अहले-वतन को हमसे भुलाया न जायेगा.

    यह सच है मौत हमको मिटा देगी एक दिन,
    लेकिन हमारा नाम मिटाया न जायेगा.

    आज़ाद हम करा न सके अपने मुल्क को,
    'बिस्मिल' ये मुँह खुदा को दिखाया न जायेगा.
     

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