Poetry Collection of Shaheed Bhagat Singh

Discussion in 'Poems and Poets' started by Rekha, Mar 23, 2014.

  1. Rekha

    Rekha New Member

    Poetry collection of Shaheed-E-Azam Sardar Bhagat Singh. He Used to Recite these Poetry couplets while he was awaiting execution in the condemned cell.

    1.

    यह न थी हमारी किस्मत जो विसाले यार होता
    अगर और जीते रहते यही इन्तेज़ार होता
    तेरे वादे पर जिऐं हम तो यह जान छूट जाना
    कि खुशी से मर न जाते अगर ऐतबार होता

    2.

    तेरी नाज़ुकी से जाना कि बंधा था अहदे फ़र्दा
    कभी तू न तोड़ सकता अगर इस्तेवार होता

    3.

    यह कहाँ की दोस्ती है (कि) बने हैं दोस्त नासेह
    कोई चारासाज़ होता कोई ग़म गुसार होता

    4.

    हूं किससे मैं के क्या है शबे ग़म बुरी बला है
    मुझे क्या बुरा था मरना, अगर एक बार होता
    (ग़ालिब)

    5.

    इशरते कत्ल गहे अहले तमन्ना मत पूछ
    इदे-नज्जारा है शमशीर की उरियाँ होना
    की तेरे क़त्ल के बाद उसने ज़फा होना
    कि उस ज़ुद पशेमाँ का पशेमां होना

    6.

    हैफ उस चारगिरह कपड़े की क़िस्मत ग़ालिब
    जिस की किस्मत में लिखा हो आशिक़ का गरेबां होना
    (ग़ालिब)

    7.

    मैं शमां आखिर शब हूँ सुन सर गुज़श्त मेरी
    फिर सुबह होने तक तो किस्सा ही मुख़्तसर है

    8.

    अच्छा है दिल के साथ रहे पासबाने अक़्ल
    लेकिन कभी – कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे

    9.

    न पूछ इक़बाल का ठिकाना अभी वही कैफ़ियत है उस की
    कहीं सरेराह गुज़र बैठा सितमकशे इन्तेज़ार होगा

    10.

    औरौं का पयाम और मेरा पयाम और है
    इश्क के दर्दमन्दों का तरज़े कलाम और है
    (इक़बाल)

    10.

    अक्ल क्या चीज़ है एक वज़ा की पाबन्दी है
    दिल को मुद्दत हुई इस कैद से आज़ाद किया

    11.

    नशा पिला के गिराना तो सबको आता है
    मज़ा तो जब है कि गिरतों को थाम ले साकी
    (ग़ालिब)

    12.

    भला निभेगी तेरी हमसे क्यों कर ऍ वायज़
    कि हम तो रस्में मोहब्बत को आम करते हैं
    मैं उनकी महफ़िल-ए-इशरत से कांप जाता हूँ
    जो घर को फूंक के दुनिया में नाम करते हैं।

    13.

    कोई दम का मेहमां हूँ ऐ अहले महफ़िल
    चरागे सहर हूँ बुझा चाहता हूँ।
    आबो हवा में रहेगी ख़्याल की बिजली
    यह मुश्ते ख़ाक है फ़ानी रहे न रहे

    14.

    खुदा के आशिक़ तो हैं हजारों, बनों में फिरते हैं मारे-मारे
    मै उसका बन्दा बनूंगा जिसको खुदा के बन्दों से प्यार होगा

    15.

    मैं वो चिराग हूँ जिसको फरोगेहस्ती में
    करीब सुबह रौशन किया, बुझा भी दिया

    16.

    तुझे, शाख-ए-गुल से तोडें जहेनसीब तेरे
    तड़पते रह गए गुलज़ार में रक़ीब तेरे।

    17.

    दहर को देते हैं मुए दीद-ए-गिरियाँ हम
    आखिरी बादल हैं एक गुजरे हुए तूफां के हम

    18.

    मैं ज़ुल्मते शब में ले के निकलूंगा अपने दर मांदा कारवां को
    शरर फ़शां होगी आह मेरी नफ़स मेरा शोला बार होगा

    19.

    जो शाख-ए- नाज़ुक पे आशियाना बनेगा ना पाएदार होगा।

    20.

    दिखाऊंगा तमाशा दी अगर फ़ुरसत ज़माने ने
    मेरा हर दाग़-ए-दिल इक तुख्म है सर्व -ए-चिराग़ां का

    21.

    दिल दे तो इस मिज़ाज़ का परवरदिगार दे
    जो ग़म की घड़ी को भी खुशी से गुजार दे

    सजाकर मैयते उम्मीद नाकामी के फूलों से
    किसी बेदर्द ने रख दी मेरे टूटे हुए दिल में

    छेड़ ना ऐ फरिश्ते तू जिक्रे गमें जानांना
    क्यूं याद दिलाते हो भूला हुआ अफ़साना

    22.

    या रब वो न समझे हैं न समझेंगे मेरी बात
    दे और दिल उनको जो न दे मुझको ज़ुबाँ और
     


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