बेड़ा गर्क किया टालमटोल की नीति ने

Discussion in 'Politics & Society' started by Dev_sinhaa, Dec 13, 2008.

  1. Dev_sinhaa

    Dev_sinhaa New Member

    जब आतंकवादियों ने गुजरात के समुद्र तट से मुंबई जाने के लिए व्यापारी नौका 'कुबेर' का अपहरण किया था उससे बहुत पहले ही अनिष्ट के संकेत उभरने लगे थे. यह बात अलग है कि सरकार और सुरक्षा बलों ने इसे समझने से इनकार कर दिया. पिछले चार वर्षों में गुजरात सरकार ने अपने 1,600 किमी लंबे समुद्र तट के लिए व्यापक सुरक्षा योजना के बारे में कई स्मरण पत्र केंद्र सरकार को भेजे थे, लेकिन हर बार गृह मंत्रालय ने उसे नकार दिया. अंतिम नामंजूरी मुंबई पर आतंकवादी हमले से सिर्फ पांच दिन पहले 21 नवंबर को दी गई थी.

    गुजरात के गृह राज्*यमंत्री अमित शाह कहते हैं, ''हमने केंद्र सरकार को समझने की कोशिश की कि अधपकी योजनाएं कारगर नहीं होंगी क्योंकि हम पाकिस्तान सीमा से बहुत दूर नहीं हैं. लेकिन केंद्र की सुरक्षा की अवधारणा में बहुत खामियां थीं.'' पिछले साल आंतरिक सुरक्षा के मसले पर मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में नरेंद्र मोदी ने यह मामला उठाया था लेकिन उनका प्रयास भी दीवारों से टक्कर मारने जैसा ही था.

    यह प्रस्ताव सबसे पहले 2003 में लाया गया था, जब भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार केंद्र में थी. 371 करोड़ रु. की प्रस्तावित पंचवर्षीय योजना में राज्*य के समुद्र तट के साथ-साथ 51 थानों, 70 चौकियों, 90 निगरानी टावरों, द्रुतगति से चलने वाली 32 नावों, तीन इंटरसेप्टर नावों की व्यवस्था करना और तटवर्ती गांवों के मछुआरों को पहचान पत्र जारी करना शामिल था. सरकार ने मछुआरों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए एक मछुआरा निगरानी समूह स्थापित करने का भी प्रस्ताव रखा था (देखें बॉक्स). पांच साल बाद राज्*य सरकार को अब भी इन प्रस्तावों की मंजूरी का इंतजार है.

    इस बीच, अपने युद्धपोतों द्वारा कराची पर हमले के 37 साल बाद भारतीय नौसेना अपना नौसेना दिवस नहीं मना रही, क्योंकि देश समुद्री मार्ग से हुए पहले हमले से हुई क्षति का शोक मना रहा है. वैसे, आतंकवादियों ने देश पर समुद्र की ओर से पहली बार हमला नहीं बोला है. 1993 में पाकिस्तान से नावों पर ही आरडीएक्स लाया गया था, जिसका इस्मेमाल मुंबई में 13 जगह हमले करने में किया गया. तब आतंकवादी हमलों में 257 लोगों की जान गई थी.

    जनवरी, 2005 में अपनी तटीय सुरक्षा योजना में केंद्र सरकार ने आठ राज्*यों और चार केंद्र शासित क्षेत्रों में विशेष तीव्र गति की नौकाओं और कर्तव्यनिष्ठ कर्मचारियों से लैस समुद्री थाने स्थापित करने के लिए 742 करोड़ रु. की स्वीकृति दी थी. इसके अंतर्गत 7,600 किमी लंबा भारतीय तट क्षेत्र आता है. इन राज्*यों में से तीन-तमिलनाडु, ओडीसा और केरल- ने अभी इस योजना को लागू नहीं किया है, जबकि महाराष्ट्र में यह योजना अभी शुरू ही हुई है. सीमाओं की सीलिंग के कारण आतंकवादियों के लिए समुद्र के रास्ते प्रवेश आसान हो गया है. पिछले दो वर्षों में खुफिया एजेंसियों ने चेतावनी दे दी थी कि पाकिस्तानी नौसेना और आइएसआइ प्रशिक्षित आतंकवादी मछुआरों के रूप में तटवर्ती क्षेत्र से घुसपैठ की साजिश रच रहे हैं. नौसेना के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, ''पिछले दो वर्षों से हम सरकार से वैसेल ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम (या वीटीएमएस) जैसी व्यवस्था की मांग कर रहे हैं, जिसके तहत सभी खतरनाक नौकाओं की टोह ली जा सकती है. हमने सभी मछुआरों को इलेक्ट्रॉनिक कार्ड जारी करने की भी मांग की थी.''

    गुजरात और केरल के बीच लगभग 3,300 किमी के संवेदनशील समुद्र तट की निगरानी में लगे पश्चिमी क्षेत्र के कोस्ट गार्ड (तटरक्षक सेना) के पास विभिन्न आकारों के 14 जहाजों और आठ निगरानी हवाई जहाजों का बेड़ा है, जबकि असल में इसे कम-से-कम 50 जलपोतों और 36 हवाई जहाजों की जरूरत है. न तो कोस्ट गार्ड को और न ही नौसेना को व्यापारी जहाजों को रोकने या उनकी तलाशी लेने का अधिकार दिया गया है. यह विशेषाधिकार तट पर नियुक्त नौकरशाह जहाजरानी महानिदेशक का ही है, और उसके पास न तो कर्मचारी होते हैं और न ही जहाज.

    अमेरिका में 9/11 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की दो गगनचुंबी इमारतों पर भीषण आतंकवादी हमले के बाद अमेरिकी सरकार ने कस्टम और कोस्ट गार्ड सहित 22 एजेंसियों को डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (डीएचएस) के झंडे तले ला दिया था. भारत में समुद्र तटों की सुरक्षा की जिम्मेदारी प्रतिरक्षा मंत्रालय के तहत काम करने वाली नौसेना और कोस्ट गार्ड पर छोड़ दी गई है, इस तरह समुद्र तट सुरक्षा संबंधी नीतियों का निर्धारण नौकरशाही के भूलभुलैया वाले गलियारों में खो जाता है. आठ तटवर्ती राज्*यों और चार केंद्र शासित क्षेत्रों के अलावा केंद्र सरकार के 12 मंत्रालय और आठ विभाग समुद्र तटवर्ती नीति निर्धारण और क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार हैं. इसका परिणाम यह होता है कि जिम्मेदारियां कई जगह बंट जाती हैं और तुरंत फैसले और कार्रवाई करने में दिक्कतें आती हैं.

    चूंकि समुद्र तट की सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता करना एक धीमी प्रक्रिया है, इसके लिए कर्मचारियों की नियुक्ति और मंच (पर्याप्त सुविधाएं) मुहैया कराने में कुछ वर्ष लग जाते हैं. इसलिए उन संभावित ठिकानों के बारे में पहले से पहचान कर लेना बहुत जरूरी है जिन पर हमले करने के लिए आतंकवादी समुद्र के जरिए आसानी से पहुंच सकते हैं. कोस्ट गार्ड के पूर्व महानिदेशक वाइस एडमिरल अरुण कुमार सिंह कहते हैं, ''इमसें शक नहीं कि मुंबई हमेशा ही हमले का सहज निशाना रहेगी और इसे अधिकतम सुरक्षा की जरूरत है; इसके अलावा गोवा, पोर्ट ब्लेयर और चेन्नै जैसे पर्यटन स्थल भी अमेरिकी, ब्रिटिश और इज्राएली पर्यटकों में काफी लोकप्रिय हैं. इनकी भी तुरंत कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की जानी चाहिए.''

    लेकिन गुजरात सरकार को सबसे ज्*यादा चिंता कच्छ से लेकर वलसाड तक के क्षेत्र में बने औद्योगिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा की है. यह पट्टी भारत के कुछ सर्वाधिक बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठानों के निर्माण पर गर्व कर सकती है. इनमें जामनगर तट पर रिलायंस और एस्सार के कच्चा तेल शोधक संयंत्र; कांडला, अडानी और पीपीवाव जैसी बंदरगाहें, सूरत के निकट हजीरा में रिलायंस और दूसरी कंपनियों के पेट्रोकेमिकल संयंत्र और भड़च्च के निकट दहेज बंदरगाह पर स्थापित नए उद्योग शामिल हैं. राज्*य पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि मुंबई में आसानी से प्रवेश पाने वाले विस्फोटकों से लैस आतंकवादी इन औद्योगिक प्रतिष्ठानों को उतनी ही सहजता से निशाना बना सकते हैं, खासकर कच्चे तेल और पेट्रोकेमिकल परिसरों पर.

    हजीरा भारत का बड़ा पेट्रोकेमिकल केंद्र है, जहां भारत की लगभग 50 फीसदी गैस का परिशोधन किया जाता है और जीएआइएल की हजीरा-बीजापुर-जगदीशपुर पाइपलाइन यहीं से शुरू होती है. इन औद्योगिक इकाइयों की ज्*वलनशीलता को देखते हुए कहा जा सकता है कि मुंबई हमले में आतंकवादियों ने जितने विस्फोटकों और अस्लहा का उपयोग किया, उसका आधा हिस्सा ही हजीरा को तबाह करने के लिए पर्याप्त है. दक्षिण गुजरात चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष चेतन शाह कहते हैं, ''हजीरा, जामनगर और दहेज जैसे क्षेत्रों को हवाई और नौसेना सुरक्षा मुहैया कराई जानी चाहिए क्योंकि इनमें से एक भी केंद्र पर आतंकवादी हमला भारत को ही पंगु कर सकता है.''

    अरसे से इस बात की आशंका व्यक्त की जा रही थी कि सौराष्ट्र-कच्छ समुद्री इलाके में मछली पकड़ते हुए पाकिस्तानी समुद्री सुरक्षा एजेंसी की गिरफ्त में आए मछुआरे पाकिस्तानी जासूसों की रणनीति का शिकार बन सकते हैं. हालांकि इसकी पुष्टि के अभी प्रमाण नहीं मिल पाए हैं. अब तक वहां से लौटा सिर्फ एक मछुआरा ही भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की जांच के दायरे में आ पाया है. कच्छ में एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी का कहना है, ''सैकड़ों मछुआरे पाकिस्तानी जेलों में हैं. और कुछ तो उनके फंदे में आ ही गए होंगे. हमारे पास उनकी तलाशी का कोई जरिया नहीं है.''

    प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा था, ''हम उन्हें इसकी भारी कीमत चुकाने को मजबूर करेंगे.'' कुछ इसी आशय के उनके शब्द थे. उनके शब्दों पर यकीन किया जा सकता था, यदि उनकी सरकार और अधिकारियों ने समय पर सही कदम उठा लिया होता. लेकिन यदि यह सरकार इसी तरह हील-हुज्*जत करती रही और कार्रवाई करने में सुस्त रही-जैसाकि गुजरात के मामले में हुआ- तो आतंकवादियों को फिर हमला करने में देर नहीं लगेगी.

    source : AajTak
     


  2. Dev_sinhaa

    Dev_sinhaa New Member

    है कोई सुनने वाला?

    है कोई सुनने वाला?

    केंद्र सरकार ने तटीय सुरक्षा के अनुरोध को हमेशा ही ठुकराया.

    - 4 अप्रैल, 2003 को गुजरात सरकार ने 1,600 किमी लंबे समुद्र तट की सुरक्षा के लिए 371 करोड़ रु. की पंचवर्षीय योजना का प्रारूप केंद्र सरकार के पास भेजा.

    - 2004 में यूपीए केंद्र में सत्ता में आता है, और वह गुजरात सरकार से संशोधित सुरक्षा योजना की मांग करता है. उसके जवाब में गुजरात सरकार 30 मई, 2005 को 321 करोड़ रु. की संशोधित योजना का प्रारूप भेजती है.

    - यूपीए सरकार योजना में काट-छांट कर 58 करोड़ रु. की योजना को मंजूरी देती है, जिसके तहत 10 थाने गठित करने का प्रावधान है. इसे गुजरात सरकार पहले ही लागू कर चुकी है.

    - यह मान कर कि 58 करोड़ रु. तटीय सुरक्षा के लिए पर्याप्त नहीं हैं, गुजरात सरकार 219 करोड़ रु. की एक अन्य योजना केंद्र सरकार की मंजूरी के लिए भेजती है, जिसे केंद्र सरकार नामंजूर कर देती है.

    - 5 जुलाई, 2007 को गुजरात सरकार केंद्र सरकार को एक अन्य पत्र भेज अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करती है. उसे जवाब मिलता है कि योजना को मंजूरी नहीं दी जा रही और इस पर 2010 में ही विचार किया जाएगा.

    - अप्रैल, 2008 में लालकृष्ण आडवाणी प्रधानमंत्री से मिलते हैं, और गुजरात सरकार की योजना पर फिर विचार करने का अनुरोध करते हैं.

    - 17 जुलाई को फिर गुजरात सरकार केंद्र से 2010 तक इंतजार करने की जगह अब ही योजना पर विचार करने को कहती है.

    - 21 नवंबर को केंद्र फिर इस प्रस्ताव को यह कह कर नामंजूर कर देता है कि इस पर 2010 में ही विचार हो सकेगा
     

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